Saturday, December 31, 2011

एक तस्वीर जो उकेरी थी दिल के किसी पन्ने पर 
शायद वो उभर आई है आज तुम्हें देख कर !


माना की खैरात लेना मेरी फितरत नहीं 
गर तेरा प्यार यूँहीं मिले तो इसमें हमें हर्ज़ नहीं!


Dil ke dhadakne se khwaishe hai ,zaroorte hai
 kal ka kya bharosa kuchh bhi n rahe.


Vo kis tarah mila ,kaise juda ho gaya,
socha tha n poochha karenge hum.


आँखों की कही आँखों तक रहती तो ठीक था,
दिल तक पहुची तो दर्द का अहसास हुआ!


ख्वाइशें रूठी जाती है दिल टूटे जाते है !
फिर भी दिल लगानेवाले दिल लगाते जाते हैं !
अब न कुछ कहने को है और न सुनने को,
तबियत न अब मेरी है शिकायत करने को!
क्या कर ,क्यों कर करूँ शिकायत उससे 
जो मेरी इस दर्द के काबिल ही नहीं है ! 

MUSKURAHAT......

लबों को फिर मेरे मुस्कुराना आ गया 
किसी ने लौट कर वापस, ये खज़ाना दे दिया!
मुद्दतें हुई हमें यूँ कुछ गुनगुनाये हुए 
लबों को आज फिर एक मीठा तराना मिल गया!
दिल ने भी मेरे छेड़ा है कोई नया फ़साना 
वो जो बैठा था बरसों से थामे हाथ तनहाइयों का !
आँखें मचल अब करतीं है हाले- बयां सबसे 
जिसे कभी वो चाँद,तारों से भी छुपाया करती थीं! 

KHAMOSHI...

अब न रहता है किसी का इंतज़ार 
और ना ही आहटें करती हैं बेक़रार !

ख़ामोशी भी खामोश रहती है 
और बेचेनी को भी सुकून रहता है !

साँसों का कारवां अब थामता नहीं 
किसी सूरत को देख दिल मचलता नहीं !

यूँ तो ज़िन्दगी कि रफ़्तार थमती नहीं 
लेकिन दिल में कुछ था जो अब जीता नहीं!
नया नया शौक है मोहब्बत का फिर हम जैसे हो जाओगे,
खुद से ही बातें किया करोगे हर आहट पर दौड़े जाओगे !

महफ़िल में दम घुटता है कुछ ऐसा कह, दिल को बहलाओगे 
अकेले में उनको याद कर खुद ही से खुद पर हंस जाओगे!

ANJAAN RAAHEN.......

जाने किस ओर हवाओं में बहती चली गई 
किसी की चाह में यूही खिंचती चली गई! 
ऐसा लगा की करता है कोई इंतज़ार मेरा 
उससे मिलने की चाह में चलती चली गई !

किसी ने बड़े प्यार से छूआ था लबों को मेरे 
उसके प्यार का एहसास था अब तक आँखों में मेरे! 
वो ले आया मुझे इन अनजानी हवाओं के जहाँ में 
जहाँ न वजूद है इस रिश्ते का दुनिया की निगाह में !

फिर भी अपने दिल से मजबूर चलती ही जा रही हूँ
उस अजनबी की चाह में खुद को खोती ही जा रही हूँ!
डरती हूँ कहीं कोई खता न कर बैठूं उसकी चाह में
लेकिन फिर भी क़दमों को अपने रोक नहीं पाती मैं!

pyaar.......


तुम्हे आश्चर्य  है कि ........
ये कैसे हो गया कुछ दिनों में  
मैं सिर्फ यही कहूँगी कि .....
यह एक दिन की बात नहीं!

तुम रोज़ आते थे दर पर मेरे... 
और खटखटाते थे दरवाज़ा! 
जानते हुए भी कि मैं रोज़....... 
झांकती होंगी खिड़की से तुम्हे!

तुमने सोचा न था कि ये प्यार है...
जो हर बार खींच लाता है तुम्हे!
तुम तो सिर्फ यही सोच चले आते थे...
कि देखें तो कौन है वो पागल लड़की!

जो न जाने कबसे खड़ी है खिड़की से लगी 
और करती है इंतज़ार न जाने किसका......
वो कुछ अकेली है ,कुछ गुमसुम सी भी है...
तो चलो पूछ आऊँ क्यों दिल दुखाये बैठी है! 

बस यही सोच तुम चले आये एक रोज़ घर मेरे 
और मैं रो पड़ी थी सर रख कर कांधे पर तुम्हारे!
शायद वही पल था जब हमने जाना कि हम एक हैं
और कर बैठे थे इकरार कि हमे प्यार है एक -दूजे से!

"एक मोड़ ऐसा भी "

जानें कुछ सोचती सी गुज़र गईं आँखें 
गली के एक मोड़ पर जाकर ठहर गईं!
बीचों-बीच खड़ा दरख़्त दिला गया कुछ याद 
दो उस पर गुदे  हुए नाम भी पढ़ा गया!

याद आई सर्दियों की एक सुबह 
जब टहलते हुए दूर निकल आए थे 
सुस्ता कर वहीँ बैठ गए थे पेड़ के नीचे!
उस दिन वो कुछ उदास सा था 

उस हाड़ कंपकंपाती ठण्ड में भी 
छुआ तो हाथ  गर्म थे उसके
शायद कुछ कशमकश थी दिल में उसके!
देखा तो ऑंखें नम हो गईं उसकी!

चूम कर पेशानी मेरी उठ खड़ा हुआ 
हाथ खींच बिठा लिया फिर से मैंने उसे !
पूछा तो जा रहा हूँ कुछ रोज़ के लिए 
करना इंतज़ार लौटूंगा,कहा था उसने!

चुपचाप देखती रही थी जाते हुए उसे मैं 
एक आंसू भी न गिरा था आँखों से तब मेरे
जानती थी कि मिलूंगी फिर एक दिन उससे
बस इसी ख़याल से संभाल लिया था दिल को मैने! 

दिन,महीने ,बरस गुज़रते गए यूहीं मुझे 
उस पेड़ के नीचे  उसका इंतजार करते हुए!
अब तो शायद ही निकलें आंसू मेरे देख उसे 
गर वो लौटे तो कभी जिसकी उम्मीद भी कम ही है !

Friday, December 30, 2011

स्वप्न........

मैं स्वप्न में जीती हूँ......
मैं स्वप्न ही लिखती हूँ !
कुछ क्षण आँखें खोल .....
यथार्थ में भी रह लेती हूँ ! 
वो क्या जाने जो न जीते हैं..... 
उस सुख को जो ये स्वप्न देते हैं! 
वास्तविकता कितनी कटुता से..... 
मरने से पहले कई बार मारती है !
दिल जिसे खोने से डरता है......
स्वप्न उन्हें संजो आँखों में रखता है!
मैं कोई कवयित्री नहीं जो कुछ लिखूं....
मैं कोई शायर नहीं जो कुछ कहूं!
मैं जीती हूँ सिर्फ जीती हूँ अपने....
सपनों को सब कुछ भूल कर!
लेकिन अब दिल चाहे संजो इन सपनो को....
कर लूं बंद अपने नयन सदा के लिए!

Wednesday, June 15, 2011

tere shahar

तेरे शहर का रुख किया तो याद आया कि

वहां तो खंडहर हुई थी कल आरज़ू मेरी!

फिर सोचा कि चलो कुरेद आयें ज़मीन वहां की

शायद नयी कोपल निकल आये उस बंज़र ज़मीन से!

Monday, April 25, 2011

सावन!


नहीं चाहती हलचल
अपने  सूने आँगन में 
नहीं चाहती कोई उथल-पुथल
दिल के छुपे अरमानों  मैं !

यह थी मेरी कैसी नियति 
बरस पड़ी घनघोर घटा 
भिगो डाला आँचल मेरा 
जो था बरसों से सूना !

मैं विरही क्या करती 
जो बरसों से थी सूखी 
एक स्पर्श सावन का पा 
पिघल गई मोम सी मैं! 

नदिया हूँ बहने लगती हूँ 
जब तन मन भर जाये जल से 
फिर क्या कोई रोक सके है 
लगा बांध वेग को मेरे 

मिलती नित सावन से 
और लहरा कर बहती जाती 
भर लेती दामन खुशियों से 
जो मिलती मुझे साँझ-सवेरे! 

हाय री किस्मत मेरी 
नेह लगा बैठी निर्मोही से 
जिसका न ढोर ठिकाना 
न कोई जिसे बाँधने वाला! 

वो ठहरा हरफन मौला 
टिकता नहीं एक का होकर 
जित जाता तित कर देता
इज़हार  प्रेम का अपने वो! 

बेबस


शाख पर एक दिन जा बैठी
लगी निहारने दुनिया को
ये बगिया मेरी है लगी सोचने
एक पल को जिसमे रहती हूँ मैं !

लोग जिन पर करती हूँ
खुद से ज्यादा मैं यकीन
हर बार तोड़ जाते है नींद
चेन की जो सोती हूँ मैं कभी!

साँसे जो कहने को तो हैं मेरी
पर दे जाती हैं धोखा हर बार
कर देती हैं हाले बयान उन्हें
जिनसे छुपाना चाहूं मैं दिल का हाल!

 ये नयन मेरे छोड़ देते हैं साथ
याद कर उन्हें,जो नज़रों से हैं दूर
आंसुओं के सैलाब को रोकती बेबस पलकें
भिगो देती हैं सूखे दामन को मेरे!

कैसे छुपाऊँ मैं दिले - हालात अपना
किस किस से छुपाऊँ मैं दिल के घाव अपने
ये वो ज़ख्म है जो रिसते हैं खुद-ब-खुद
दिला जाते हैं याद ज़ख्म देने वाले की मुझे!

ग़म!


ए चाँद तेरी चांदनी अब जलाती है 
रूह की गर्मी को और बढाती है!

तेरे पहलू में तस्सली से गुज़री रातें
ग़मगीन हो गयीं हैं,उखड़ी हैं साँसें!

अश्क देते हैं साथ अब तकिये का 
छोड़ हाथ अब मेरी दोनों आँखों का! 

दिल  के ज़ख्म  हरे हो चुभने लगें हैं 
ओस की बूंदों से भी दर्द नहीं बहते हैं!

दिल में अब ऐसे बस गए हैं मेरे ग़म
कि सूरज ही पिघलाए तो निकले दम!

देस-परदेस!


वो देस तेरा अपना है वो लोग तेरे अपने है 
जो करते हैं इंतज़ार तेरे वापस आने का! 

खेल कुछ घड़ियों का ही है जो तुझे खेलना है 
फिर वापस  तुझे देस अपने ही तो  लौटना है! 

जीवन जीने के लिए डॉलर  भी कमाना है
बहुत कुछ पाने के लिए थोड़ा दूर ही तो जाना है! 

इतना मायूस न हो इतना बेबस न हो 
वक़्त का क्या है गुजरता है गुज़र ही जायेगा! 

तू याद कर उस लम्हे को जब तू निकला था घर से 
क्या -क्या उम्मीदें झलकीं थी तेरे अपनों की बातों से!

कितने आसूं रोये थे तूने और तेरे अपनों ने जुदाई के
बस यही सोच कर चंद लम्हे और गुज़ार ले तू परदेस में!  

प्रयास!


लोगों को जब लिखते देखा करती थी, 
सोचा करती थी कि मैं भी कुछ लिखूं!
लिखने कि जब जुर्रत कि मैंने कुछ, 
तो बेचारी कलम भी गई कांप-कांप!
डर गई शायद जाने क्या लिख डालूँ,
तभी बार बार रुक- रुक सी जाती थी!
जानें क्या लिखा मैंने,मैं भी न समझी,
आखिरकार पन्ना भी कर उठा विद्रोह,
सिमटने लगा इधर-उधर  ले करवट,
बड़ा विचित्र सा मंजर था उस रात जब 
कलम,पन्ना और मैं जूझ रहे थे आपस में,
कोशिश हर तरफ से थी विजयी होने की!
पास पड़ा कूड़ेदान देख रहा था इस खेल को, 
उसकी लपलपाती जीभ कुछ मांग रही थी!  
पूरी हुई उसकी मंशा, भूख हुई कुछ शांत, 
शायद मेरे  लिखने का प्रयास पड़ा फीका!
कलम,पन्ना और कूड़ेदान लगे चिढ़ाने,
इतना कहाँ था बर्दाश्त इस नाचीज़ को, 
कमर कस कर टूट पड़ी फिर मैदान में!
कुछ सोचा, कुछ लिखा, कुछ काटा फिर 
देखा , लगा कूड़ेदान भी करने उल्टियाँ!
अब तो इंतिहा हो गई मेरे इम्तिहान की,
जब दिल ने परेशां  देखा मेरे दिमाग को 
तो उतर आया मैदान में देने साथ मेरा !
दिला गया याद मुझे मेरे प्रियतम की! 
फिर क्या था लिख डाला मैंने बहुत कुछ,
अब तो कलम,पन्ने भी कम पड़ने लगे हैं!
और अब  कूड़ेदान गुस्सा हो घूरता है मुझे 
कागज़,कलम,दवात बन गए हैं मेरे गुलाम,
पहली बार लगा मैं भी कुछ लिख सकती हूँ! 

रंगरेज मेरे!


रंग डाला तूने हर चीज़ को अलग ही रंग से 
तू ऐसा  रंगरेज़ जिसकी हर बात नायाब है! 

रंग हिना का रच दिया हथेली पर उसकी 
कह दिया उसको कि तू हो गई किसी की! 

माथे को तूने दे दिया लाल रंग सिन्दूर का 
कर दिया श्रृंगार पूरा  तूने एक सुहागन का!

आँखों का गुलाबीपन निखर आया जब 
तूने चढ़ाया नशा उनमें किसी के प्यार का! 

धरती को ढक  दिया धानी रंग की चादर से 
चाँद को तूने भर दिया एक नए चांदनी रंग से!

बारिश के छींटे जब बरसाए तूने धरती पर 
आकाश इतराया ओढ़ इन्द्रधनुष के रंग !

अनगिनत रंग भर दिए तूने सपनों में सबके
जिन्हें हर दिल देखा करता है जीने के लिए! 

Friday, March 11, 2011

ख्वाइश




ऐ मेरी तेज़ चलती हुई सांसो ,
ज़रा थम जाओ ,आवाज़ न करो !
वो देखो सोती है कैसे ज़िन्दगी मेरी ,
बेफिक्र,बेपरवाह ,खोई है मीठे ख्वाबों में!

जाने दो चुपके से मुझे उसके करीब
रख देने दो  होंठ उसकी गर्दन के समीप!
चूम लेने दो उसकी एक -एक  नस 
जो बढाती है खूबसूरती उसकी ! 

समां लेने दो उसकी सोंधी सांसों की खुशबू  ,
हो जाने दो मिलन आज  सांसों का !
ये देखो चूम ली  मैंने उसकी गर्दन 
और निकल आये मेरे आंसू छलक! 

बस दिल ना रहा मेरे काबू और
तन चाहा सामना उसमें !
लिपट गयी एक लता सी उसके तन से,
न छोड़ने के लिए उसे कभी !

बस उसमे खुद को डुबाना चाहती हूँ 
उसको खुद में सामना चाहती हूँ! 
बस बस यूहीं  खो जाना चाहती हूँ 
अब  न मन पर है मेरा कोई जोर !

और न तन पर है मेरा कोई काबू  
बहती ही जा रही हूँ उसमे समाकर !
मैं चली एक नयी दुनिया की ओर
जहाँ न होगा हमें रोकनेवाला कोई! 

हम रहेंगे एक दूजे में समाये यूंही!
दुनिया के रंजों गम भुला के सभी!
चाँद ,सूरज निकलेंगे बस हमारे लिए,
हमीं से शुरू और खतम दास्तान होगी !

मेरी आरज़ू

न तुम मुझसे मिलो न मै तुमसे ,
बस यूहीं ख्वाबों ख्यालों में ,
करें महसूस एक दूसरे को ,
जो की बांधे है हमे एक डोर से !

शायद है ये तुम्हारे प्यार का असर ,
की रोके है मुझे कुछ कर गुजरने से! 
वर्ना ऐसा क्या रखा है इस जीवन में 
सिर्फ तुम्हारे एहसास के सिवा ! 

रोज़ उठती हूँ पिसती हूँ 
ज़िन्दगी की इस चक्की में ,
सिर्फ यही सोच कर जीती हूँ की 
शायद कल जीयूँगी बेहतर मैं !

ऐसा न हो की इस आरज़ू में 
ये जान निकल जाये मेरे तन से ,
और खो जाये तेरी यादें  और 
मेरा नामों निशान इस जग से !

रहने दो यूँहीं मुझे तुम्हारे ख्वाबों में ,
जीने दो मुझे यूँहीं तुम्हारी यादों में !
कभी तो आएगा तरस इस किस्मत को 
और लौटा जायगी तुम्हे मेरी बाँहों में!

फिर  आयेंगे दिन अपनी खुशियों के ,
फिर खिलेंगे फूल अपनी मुहब्बत के !
फिर गुजरेंगे दिन-रात एक -दूसरे की बाँहों में ,
फिर जीयेंगे रंजोगम मिटा हम इस जहाँ में!

Saturday, March 5, 2011



 अपने  दिल  से  किसी  को  जुदा  कर ,
उसकी याद  को  दिल  से  फ़ना  कर ,

  • लगता  है  आज  सुकून  से  सो  पाऊँगी

कुछ  अपने  लिए  शायद  जी पाऊँगी .
जिसका  नाम  जुबान  पर  ,
आते  ही   घुल   जाता  था  शहद  होठों  पर ,
उसको  भूल  कर  शायद ,
कर पाऊँगी  अधिकार  अपने  दिल   पर .




  • मेरे  लिए  दोस्त  से   बढकर  रकीब  ही  निकला ,
जिसने  हर  पल  याद  तो  किया   दुश्मनी  से  ही  भला .
पर  मेरे  दोस्त  ने  तो   न  ली  सुध   ही  मेरी ,
शायद  समझा  न  इस  लायक  की  फ़िक्र  करे  वो  मेरी .




  • हमने  अपने  आप  से  ही  दोस्ती  कर  ली ,
क्यांकि  ये  आरज़ू  थी  मेरे  एक  दोस्त  की ,
जब  से  खुद  के  साथ  गुज़ारने  लगे  हैं  वक़्त  ,
धोड़ा  बहुत  खुद को पहचानने  लगे हैं  हम .



  • मेरी जिंदगी  मेरी  मौत  से  भी  बदत्तर  है  मालिक ,
मौत  तो  एक  बार  आकर  सुकून   दे  जाती  है ,
पर  ये  जिंदगी  हर  पल  है  रुलाती  हमको ,
तिनका  तिनका  कर  बिखेरती  है  मुझको ,
जिसको  समटने  की  ना अब  कोशिश  है  मेरी!
मन में जो ठाना है  तुमने 
उसको पूरा कर दिखाना है तुमने .
गर आये कितने ही आंधी-तूफ़ान ,
हर विघ्न को करना है पार तुमने .

कुछ पाने के लिए पड़ता है कुछ खोना ,
पर उस थोड़े से खोने पर तुम न रोना .
जो तुम पाओगे,होगा वो आधार जीवन का ,
समेट लोगे तुम सपना अपनी खुशियों का .

अभी घडी है अपनों से बिछुड़ने की ,
ये ही तो हैं  सीढ़ी तुम्हारी उन्नति की .
इन्हें संभालो,अपने को आजमा लो
,बस  सोचो  यही  की ,
ये घडी है तुम्हारे इम्तिहान की .


   

छेड़छाड़


रुख हवाओं का मोड़ जाऊंगी 
एक दिन पीया की नगरिया 
जहाँ करते होंगे  इंतज़ार मेरा 
मेरे सांवरिया !
चुपके से डालूंगी डेरा अंगना उनके 
जा छुपूंगी घर के किसी कोने  !
वो जब ढूँढेंगे मुझे ,मेरा नाम ले 
पायल झन्का दूँगी कानो में हलके से 
लहरा के हलके से आँचल अपना 
बिखरा दूँगी खुशबू बालों की हवाओं में 
जब वो बेचेन हो ढूँढेंगे मुझे 
मै जा छिपूंगी  अमुआ तले
खो जाऊँगी सपनों में जो  बिताये थे वहां  
सुन उनके आने की आहट 
लौट आउंगी नैनों में,  नए सपने लिए 
उनकी बेबसी पर थोड़ा हंसूंगी 
पर मन ही मन थोड़ा तद्पूंगी
कितना सुंदर होगा मुखड़ा उनका 
वो ढूँढ़ते चंचल नयन उनके 
बस अब न कर पाएँ शायद इंतजार 
बिफर जाएँ न पाकर मुझे वहां 
जा चुपके से कान में कह दूँगी 
लो आ गई ,संभालो मुझे 
वो करेंगे बहाना रूठने का फिर 
झिड़क देंगे हाथ बालों से अपने 
मैं डाल दूँगी बाहें गले में उनके 
रख दूँगी अधर ,अधरों पर उनके! 

Sunday, January 23, 2011

mai bhi

जब माँ ने पहली बार मुझे देखा तब वो रोई ,
मै तब  रोई जब पहुंची उसके आँचल में ,
जब हुई विदा बाबुल के घर से तब निकले ये मोती ,
मै तब भी रोई जब घर आई बेटी मेरी ,
मै कल  भी  रोई जब वो गया जीवन से मेरे ,
कोई आया खुशिया लेकर आज ,लो फिर रो पड़ी मै!

Wednesday, January 19, 2011

मुझको क्या लेना?

मुझको क्या लेना उस भूखे बिखारी से 
जिसकी काया है एक बुनी चारपाई सी!
मुझको क्या लेना उस भूख से बिलखते बच्चे से ,
जो बस लगता है टुकड़ा एक हाड़ मास का!
मुझको क्या लेना उस झुग्गी-झोपड़ से,
जहाँ न जल पता है दिया भागने तम को!
मुझको क्या लेना उस मजदूर औरत से,
जो ढोते-ढोते बोझ, खुद हो गई है बोझ!
मुझको क्या लेना उन अनाथ बच्चों से ,
जो तकते है राह उसकी जो बढकर थाम ले उनको! 
मुझको क्या लेना उस बीमार कोढ़ी से,
जो दिन-रात करता है दुआ अपनी मौत की!
मुझको क्या लेना इन बेकार की चीजों से ,
मेरे तो घर लगा है दिवाली का मेला !
मुझे क्या लेना कोई खाए ,कोई सोये भूखे पेट,
मेरे घर तो लगा है भंडार मिठाई -पकवानों का!
मुझको क्या लेना कोई जीए ,या मरे,
में तो यूहीं मनाऊंगी हर त्यौहार,हर साल!
शायद मैं तब समझूँगी जब मैं हौंगी उस पार,
और वो सब होंगे इस पार,मेरी जगह