Wednesday, January 19, 2011

मुझको क्या लेना?

मुझको क्या लेना उस भूखे बिखारी से 
जिसकी काया है एक बुनी चारपाई सी!
मुझको क्या लेना उस भूख से बिलखते बच्चे से ,
जो बस लगता है टुकड़ा एक हाड़ मास का!
मुझको क्या लेना उस झुग्गी-झोपड़ से,
जहाँ न जल पता है दिया भागने तम को!
मुझको क्या लेना उस मजदूर औरत से,
जो ढोते-ढोते बोझ, खुद हो गई है बोझ!
मुझको क्या लेना उन अनाथ बच्चों से ,
जो तकते है राह उसकी जो बढकर थाम ले उनको! 
मुझको क्या लेना उस बीमार कोढ़ी से,
जो दिन-रात करता है दुआ अपनी मौत की!
मुझको क्या लेना इन बेकार की चीजों से ,
मेरे तो घर लगा है दिवाली का मेला !
मुझे क्या लेना कोई खाए ,कोई सोये भूखे पेट,
मेरे घर तो लगा है भंडार मिठाई -पकवानों का!
मुझको क्या लेना कोई जीए ,या मरे,
में तो यूहीं मनाऊंगी हर त्यौहार,हर साल!
शायद मैं तब समझूँगी जब मैं हौंगी उस पार,
और वो सब होंगे इस पार,मेरी जगह                      

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