Friday, December 30, 2011

स्वप्न........

मैं स्वप्न में जीती हूँ......
मैं स्वप्न ही लिखती हूँ !
कुछ क्षण आँखें खोल .....
यथार्थ में भी रह लेती हूँ ! 
वो क्या जाने जो न जीते हैं..... 
उस सुख को जो ये स्वप्न देते हैं! 
वास्तविकता कितनी कटुता से..... 
मरने से पहले कई बार मारती है !
दिल जिसे खोने से डरता है......
स्वप्न उन्हें संजो आँखों में रखता है!
मैं कोई कवयित्री नहीं जो कुछ लिखूं....
मैं कोई शायर नहीं जो कुछ कहूं!
मैं जीती हूँ सिर्फ जीती हूँ अपने....
सपनों को सब कुछ भूल कर!
लेकिन अब दिल चाहे संजो इन सपनो को....
कर लूं बंद अपने नयन सदा के लिए!

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