अब न कुछ कहने को है और न सुनने को,
तबियत न अब मेरी है शिकायत करने को!
क्या कर ,क्यों कर करूँ शिकायत उससे
जो मेरी इस दर्द के काबिल ही नहीं है!
जगमगाते रंग अब कुछ सोते से हैं
,
खिलखिलाते रंग अब कुछ रोते से हैं
कैनवास हुआ है अब विधवा की मांग सा
खोजता वो हाथ जो भरता रंग अनगिनत उसमें !
और कब तक हारेगी वफ़ा बेवफाई से यूहीं!
तबियत न अब मेरी है शिकायत करने को!
क्या कर ,क्यों कर करूँ शिकायत उससे
जो मेरी इस दर्द के काबिल ही नहीं है!
जगमगाते रंग अब कुछ सोते से हैं
,
खिलखिलाते रंग अब कुछ रोते से हैं
कैनवास हुआ है अब विधवा की मांग सा
खोजता वो हाथ जो भरता रंग अनगिनत उसमें !
आखिर कब तक चलेगी ये आँख मिचोली
और कब तक हारेगी वफ़ा बेवफाई से यूहीं!
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