Sunday, January 1, 2012

chand......

ए चाँद आज तू कुछ जुदा सा लगता है ,
रंग धरती का तुझ पर चढ़ा सा लगता है
ऐसी क्या खता हुई मुझसे मेरी जान 
कि तू मुझसे कुछ खफा सा लगता है!

कब से तेरी राह में आँखें बिछाए बैठी हूँ ,
पिछले कुछ दिवस सदियों से जिए बैठी हूँ
जब भी कोई पत्ता झरा शाख से अँधेरे में
लगा जैसे की तू कुछ कह रहा हो मुझसे!

तेरी यादों के झरोखों से जब झाँका मैंने 
सिर्फ अपना चेहरा पाया तेरी आँखों में मैंने 
पर फिर क्यों आज ये दिल इतना बेचेन है 
लगता है खुद पर अब ऐतबार खो दिया मैंने!

तू ही बता दे मुझको अब, क्या मैं सही हूँ ?
या ये सिर्फ मेरा डर है तुझसे जुदा होने का
आज कि रात कर ले एक वादा तू मुझसे 
कि कल न होगा धरती का साया तुझ पर!

हम फिर पहले से मिलेंगे पहाड़ों के पीछे
दुनिया से परे चांदनी की चादर में लिपटे 
तू फिर मेरी मांग सजा देना सितारों से
मैं फिर बुन लूंगी सपने सतरंगी संग तेरे!

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