खड़ी हूँ आज कनारे तेरे,तो तू न समझ ये समंदर
कि मेरे पैर छू लेने पर कर दूँगी तुझे मुआफ मै !
तूने छीना है मुझसे मेरे लोगों को ओ सुनामी
,
अब न पिघलेगा दिल मेरा तेरी किसी गुहार पर!
अब न पिघलेगा दिल मेरा तेरी किसी गुहार पर!
न जाने कितने ही घर-परिवार उजाड़े हैं तूने
फिर भी चाहता है कि कर दूं मुआफ मै तुझे!
ऐसा क्या छीन लिया था मेरे लोगों ने तुझसे
कि तू कहर बरपा गया जीवन पर उनके!
सिर्फ ज़मीन का छोटा सा हिस्सा ही तो लिया था
जिस पर गुज़र करते थे परिवार का वो कुछ बेच-खाकर!
कैसा तू राक्षस है कि पेट भरता ही नहीं तेरा कभी
न जाने कितने ही जहाजों को खा गया तू लोगों समेत!
देख देख कुछ तो सीख तू ओसामा से तो आज
कितनी ही जानें लेने के बाद पड़ा है शांत आगोश में तेरे!
पर तू है की थमने का नाम ही नहीं लेता,
बनाता है नित नए लोगों को ग्रास अपना तू!
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