Friday, March 11, 2011

मेरी आरज़ू

न तुम मुझसे मिलो न मै तुमसे ,
बस यूहीं ख्वाबों ख्यालों में ,
करें महसूस एक दूसरे को ,
जो की बांधे है हमे एक डोर से !

शायद है ये तुम्हारे प्यार का असर ,
की रोके है मुझे कुछ कर गुजरने से! 
वर्ना ऐसा क्या रखा है इस जीवन में 
सिर्फ तुम्हारे एहसास के सिवा ! 

रोज़ उठती हूँ पिसती हूँ 
ज़िन्दगी की इस चक्की में ,
सिर्फ यही सोच कर जीती हूँ की 
शायद कल जीयूँगी बेहतर मैं !

ऐसा न हो की इस आरज़ू में 
ये जान निकल जाये मेरे तन से ,
और खो जाये तेरी यादें  और 
मेरा नामों निशान इस जग से !

रहने दो यूँहीं मुझे तुम्हारे ख्वाबों में ,
जीने दो मुझे यूँहीं तुम्हारी यादों में !
कभी तो आएगा तरस इस किस्मत को 
और लौटा जायगी तुम्हे मेरी बाँहों में!

फिर  आयेंगे दिन अपनी खुशियों के ,
फिर खिलेंगे फूल अपनी मुहब्बत के !
फिर गुजरेंगे दिन-रात एक -दूसरे की बाँहों में ,
फिर जीयेंगे रंजोगम मिटा हम इस जहाँ में!

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