Saturday, December 31, 2011

"एक मोड़ ऐसा भी "

जानें कुछ सोचती सी गुज़र गईं आँखें 
गली के एक मोड़ पर जाकर ठहर गईं!
बीचों-बीच खड़ा दरख़्त दिला गया कुछ याद 
दो उस पर गुदे  हुए नाम भी पढ़ा गया!

याद आई सर्दियों की एक सुबह 
जब टहलते हुए दूर निकल आए थे 
सुस्ता कर वहीँ बैठ गए थे पेड़ के नीचे!
उस दिन वो कुछ उदास सा था 

उस हाड़ कंपकंपाती ठण्ड में भी 
छुआ तो हाथ  गर्म थे उसके
शायद कुछ कशमकश थी दिल में उसके!
देखा तो ऑंखें नम हो गईं उसकी!

चूम कर पेशानी मेरी उठ खड़ा हुआ 
हाथ खींच बिठा लिया फिर से मैंने उसे !
पूछा तो जा रहा हूँ कुछ रोज़ के लिए 
करना इंतज़ार लौटूंगा,कहा था उसने!

चुपचाप देखती रही थी जाते हुए उसे मैं 
एक आंसू भी न गिरा था आँखों से तब मेरे
जानती थी कि मिलूंगी फिर एक दिन उससे
बस इसी ख़याल से संभाल लिया था दिल को मैने! 

दिन,महीने ,बरस गुज़रते गए यूहीं मुझे 
उस पेड़ के नीचे  उसका इंतजार करते हुए!
अब तो शायद ही निकलें आंसू मेरे देख उसे 
गर वो लौटे तो कभी जिसकी उम्मीद भी कम ही है !

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