अब न कुछ कहने को है और न सुनने को,
तबियत न अब मेरी है शिकायत करने को!
क्या कर ,क्यों कर करूँ शिकायत उससे
जो मेरी इस दर्द के काबिल ही नहीं है !
तबियत न अब मेरी है शिकायत करने को!
क्या कर ,क्यों कर करूँ शिकायत उससे
जो मेरी इस दर्द के काबिल ही नहीं है !
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