तुम्हे आश्चर्य है कि ........
ये कैसे हो गया कुछ दिनों में
मैं सिर्फ यही कहूँगी कि .....
यह एक दिन की बात नहीं!
तुम रोज़ आते थे दर पर मेरे...
और खटखटाते थे दरवाज़ा!
जानते हुए भी कि मैं रोज़.......
झांकती होंगी खिड़की से तुम्हे!
तुमने सोचा न था कि ये प्यार है...
जो हर बार खींच लाता है तुम्हे!
तुम तो सिर्फ यही सोच चले आते थे...
कि देखें तो कौन है वो पागल लड़की!
जो न जाने कबसे खड़ी है खिड़की से लगी
और करती है इंतज़ार न जाने किसका......
वो कुछ अकेली है ,कुछ गुमसुम सी भी है...
तो चलो पूछ आऊँ क्यों दिल दुखाये बैठी है!
बस यही सोच तुम चले आये एक रोज़ घर मेरे
और मैं रो पड़ी थी सर रख कर कांधे पर तुम्हारे!
शायद वही पल था जब हमने जाना कि हम एक हैं
और कर बैठे थे इकरार कि हमे प्यार है एक -दूजे से!
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