Monday, April 25, 2011

रंगरेज मेरे!


रंग डाला तूने हर चीज़ को अलग ही रंग से 
तू ऐसा  रंगरेज़ जिसकी हर बात नायाब है! 

रंग हिना का रच दिया हथेली पर उसकी 
कह दिया उसको कि तू हो गई किसी की! 

माथे को तूने दे दिया लाल रंग सिन्दूर का 
कर दिया श्रृंगार पूरा  तूने एक सुहागन का!

आँखों का गुलाबीपन निखर आया जब 
तूने चढ़ाया नशा उनमें किसी के प्यार का! 

धरती को ढक  दिया धानी रंग की चादर से 
चाँद को तूने भर दिया एक नए चांदनी रंग से!

बारिश के छींटे जब बरसाए तूने धरती पर 
आकाश इतराया ओढ़ इन्द्रधनुष के रंग !

अनगिनत रंग भर दिए तूने सपनों में सबके
जिन्हें हर दिल देखा करता है जीने के लिए! 

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