Sunday, January 1, 2012

ikrar...

मैंने कभी न चाहा कि तुम इकरार करो
.... 
मैनें कभी न चाहा कि तुम मुझे प्यार करो
 ..
मैंने कभी न चाहा कि तुम आओ कब्र पर मेरी
.. 
पर हाँ!गर आ ही गए हो तुम दर पर मेरे भूले से
.. 
तो बहा दो आज, दो बूँद अश्क मिटटी पर मेरी.

कर लूंगी तस्सल्ली ये सोचकर मेरे दिलबर कि
.. 
चलो राहत तो दी तुमने,भले ही कुछ देर से सही
.. 
आज देकर रूह को मेरी अपने आंसुओं की गर्मी!

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