कल देखा तो सूरज
कुछ अलग ही लगा
कुछ बहका बहका
कुछ मदमस्त सा!
बच्चों सा शर्माता
कुछ झूमता सा
कभी दौड़ लगाता
कभी मुंह छुपाता!
कभी खेलता .....
आँख मिचौनी बादलों संग
कभी घूमता अठन्नी
सा पूरे आकाश में!
ना जाने ऐसा क्यों था
वो कल जो नज़रें चुराता
हर उससे जिसे
तपाता था वो हर रोज़!
कुछ अजीब था वो...
देखा तो पाया एक.....
शराबी जल की जगह
मदिरा चढ़ा गया था
शायद उसे उस रोज़ !
कुछ अलग ही लगा
कुछ बहका बहका
कुछ मदमस्त सा!
बच्चों सा शर्माता
कुछ झूमता सा
कभी दौड़ लगाता
कभी मुंह छुपाता!
कभी खेलता .....
आँख मिचौनी बादलों संग
कभी घूमता अठन्नी
सा पूरे आकाश में!
ना जाने ऐसा क्यों था
वो कल जो नज़रें चुराता
हर उससे जिसे
तपाता था वो हर रोज़!
कुछ अजीब था वो...
देखा तो पाया एक.....
शराबी जल की जगह
मदिरा चढ़ा गया था
शायद उसे उस रोज़ !
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